तलवार Poetry (page 9)

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर

बेख़ुद देहलवी

दिल लिया जान ली नहीं जाती

बेदम शाह वारसी

तरहदार कहाँ से लाऊँ

बेबाक भोजपुरी

रक़्क़ासा-ए-औहाम

बेबाक भोजपुरी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का

बयान मेरठी

हिन्द के जाँ-बाज़ सिपाही

बर्क़ देहलवी

दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है

बाक़ी सिद्दीक़ी

तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था

बकुल देव

क़ातिल हुआ ख़मोश तो तलवार बोल उठी

बख़्श लाइलपूरी

कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस

बहराम जी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के

ज़फ़र

कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है

अज़लान शाह

कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है

अज़लान शाह

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

आख़िरी दिन से पहले

अज़ीज़ क़ैसी

लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है

अज़हर फ़राग़

दर टूटने लगे कभी दीवार गिर पड़े

अज़हर अदीब

देख क़िंदील रुख़-ए-यार की जानिब मत देख

अज़हर अब्बास

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर

आज़ाद गुलाटी

बुझने लगे नज़र तो फिर उस पार देखना

अय्यूब ख़ावर

दे कर पिछली यादों का अम्बार मुझे

अतीक़ुल्लाह

भरोसे का क़त्ल

अतीया दाऊद

तआरुफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़फ़ा न हो कि तिरा हुस्न ही कुछ ऐसा था

असलम अंसारी

गुबार-ए-एहसास-ए-पेश-ओ-पस की अगर ये बारीक तह हटाएँ

असलम अंसारी

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