तलवार Poetry (page 11)

फूल जैसी है कभी ये ख़ार की मानिंद है

अम्बर जोशी

मैं तो मैं ग़ैर को मरने से अब इंकार नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

धावा बोलेगा बहुत जल्द ख़िज़ाँ का लश्कर

आलोक यादव

तारिक़ की दुआ

अल्लामा इक़बाल

तीन शराबी

अली सरदार जाफ़री

हाथों का तराना

अली सरदार जाफ़री

वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें

अली सरदार जाफ़री

शाख़-ए-गुल है कि ये तलवार खिंची है यारो

अली सरदार जाफ़री

सर्कस

अली इमरान

जब तक खुली नहीं थी असरार लग रही थी

आलम ख़ुर्शीद

दारू-ए-होश-रुबा नर्गिस-ए-बीमार तो हो

अख़्तर ओरेनवी

खींचो न कमानों को न तलवार निकालो

अकबर इलाहाबादी

आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है

अजमल अजमली

कुछ शफ़क़ डूबते सूरज की बचा ली जाए

अहमद शनास

दुनिया सभी बातिल की तलबगार लगे है

अहमद शाहिद ख़ाँ

ज़िंदगी ख़ौफ़ से तश्कील नहीं करनी मुझे

अहमद ख़याल

जैसी होनी हो वो रफ़्तार नहीं भी होती

अहमद ख़याल

कोई मंसब कोई दस्तार नहीं चाहिए है

अहमद कामरान

अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगली

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली

आग़ा हज्जू शरफ़

आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

आग़ा हज्जू शरफ़

हुस्न हीरे की कनी हो जैसे

अफ़ज़ल परवेज़

अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

जंगल के पास एक औरत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

एक तलवार की दास्तान

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

मुझ को मंज़र के सिले में वो सदा भेजता है

आफ़ताब अहमद शाह

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ

आदिल मंसूरी

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आदिल मंसूरी

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