एक तलवार की दास्तान

ये आईने का सफ़र-नामा नहीं

किसी और रंग की कश्ती की कहानी है

जिस के एक हज़ार पाँव थे

ये कुएँ का ठंडा पानी नहीं

किसी और जगह के जंगली चश्मे का बयान है

जिस में एक हज़ार मशअलची

एक दूसरे को ढूँड रहे होंगे

ये जूतों की एक नर्म जोड़ी का मोआमला नहीं

जिस के तलवों में एक जानवर के नर्म

और ऊपरी हिस्से में उस की मादा की खाल हम-जुफ़्त हो रही है

ये एक ईंट का क़िस्सा नहीं

आग पानी और मिट्टी का फ़ैसला है

ये एक तलवार की दास्तान है

जिस का दस्ता एक आदमी का वफ़ादार था

और धड़ एक हज़ार आदमियों के बदन में उतर जाता था

ये बिस्तर पर धुली धुलाई एड़ियाँ रगड़ने का तज़्किरा नहीं

एक क़त्ल-ए-आम का हल्फ़िया है

जिस में एक आदमी की एक हज़ार बार जाँ-बख़्शी की गई

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