उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी
बहार-ए-गुल को बहुत बे-हुनर कहा उस ने
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मैं डरता हूँ
शाइरी मैं ने ईजाद की
रौशन वो दिल पे मेरे दिल-आज़ार से हुआ
दुआ की राख पे मरमर का इत्र-दाँ उस का
हमें भूल जाना चाहिए
जंगल के पास एक औरत
दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाएर
अगर तुम तक मेरी आवाज़ नहीं पहुँच रही है
ज़िंदगी हमारे लिए कितना आसान कर दी गई है
अगर उन्हें मालूम हो जाए
वक़्त उन का दुश्मन है