यही बहुत थे मुझे नान ओ आब ओ शम्अ ओ गुल
सफ़र-नज़ाद था अस्बाब मुख़्तसर रक्खा
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मैं दिल को उस की तग़ाफ़ुल-सरा से ले आया
दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत
तुम नींद में बहुत ख़ूब-सूरत लगती हो
इस दिल को किसी दस्त-ए-अदा-संज में रखना
मोहब्बत
कोई न हर्फ़-ए-नवेद-ओ-ख़बर कहा उस ने
फ़ैसला
तुम ख़ूब-सूरत दाएरों में रहती हो
कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैं
अगर उन्हें मालूम हो जाए
अगर हम गीत न गाते
ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का