तलवार Poetry (page 8)

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

ग़ालिब

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं

ग़ालिब

हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन

फ़ितरत अंसारी

कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

शहर में जीना है चलना दो-रुख़ी तलवार पर

फ़ारूक़ शफ़क़

और मैं चुप रहा

फ़ारूक़ नाज़की

सब्ज़ मौसम की रिफ़ाक़त उस का कारोबार है

फ़ारूक़ अंजुम

जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया

फ़ारूक़ अंजुम

साँसें ना-हमवार मिरी

फ़रहत एहसास

देखो अभी लहू की इक धार चल रही है

फ़रहत एहसास

इधर न देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

राहदारी में गूँजती नज़्म

फ़हीम शनास काज़मी

''ला'' भी है एक गुमाँ

फ़हीम शनास काज़मी

तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है

फ़ाएज़ देहलवी

गुल तिरे मुख की फ़िक्र में बीमार

फ़ाएज़ देहलवी

शहर-ए-बीना के लोग

एजाज़ रिज़वी

इल्म

दाऊद ग़ाज़ी

रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है

दानिश अलीगढ़ी

ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए

दानिश अलीगढ़ी

ज़ालिम ने क्या निकाली रफ़्तार रफ़्ता रफ़्ता

दाग़ देहलवी

बात का ज़ख़्म है तलवार के ज़ख़्मों से सिवा

दाग़ देहलवी

साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं

दाग़ देहलवी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

दाग़ देहलवी

निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है

दाग़ देहलवी

ये अदा आप में सरकार कहाँ थी पहले

बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद

ये कैसी आग अभी ऐ शम्अ तेरे दिल में बाक़ी है

बिस्मिल इलाहाबादी

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

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