तलवार Poetry (page 6)

दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

दम भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

जो मुझे मर्ग़ूब हो वो सोगवारी चाहिए

रशीद लखनवी

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

रशीद लखनवी

ग़ैर की ख़ातिर से तुम यारों को धमकाने लगे

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

राम रियाज़

सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पार्टीशन

राजा मेहदी अली ख़ाँ

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है

राही फ़िदाई

लब पे आई हुई ये जान फिरे

इंशा अल्लाह ख़ान

है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए

इंशा अल्लाह ख़ान

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

शोर है उस सब्ज़ा-ए-रुख़्सार का

इमदाद अली बहर

सैर उस सब्ज़ा-ए-आरिज़ की है दुश्वार बहुत

इमदाद अली बहर

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से

इमदाद अली बहर

हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब

इमदाद अली बहर

चूर सदमों से हो बईद नहीं

इमदाद अली बहर

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

आरास्तगी बड़ी जिला है

इमदाद अली बहर

ज़ोर है गर्मी-ए-बाज़ार तिरे कूचे में

इमाम बख़्श नासिख़

है मोहब्बत सब को उस के अबरू-ए-ख़मदार की

इमाम बख़्श नासिख़

गेसू ओ रुख़्सार की बातें करें

इमाम अाज़म

इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो

इफ़्तिख़ार राग़िब

मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था

हिमायत अली शाएर

डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में

हातिम अली मेहर

न समझे दिल फ़रेब-ए-आरज़ू को

हसरत मोहानी

मज़हब-ए-इश्क़ में शजरा नहीं देखा जाता

हाशिम रज़ा जलालपुरी

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