'लँहगा-संघा' कलमा पढ़
ला-इलाहा आगे पढ़
आगे आप बता दीजे
मेरी जान बचा लीजे
आगे मुझे अगर आता
तुम से मैं क्यूँ पढ़वाता
सोच न अब बे-कार 'रहीम'
बार इस को तलवार रहीम
दूर हों उस के सब दुखड़े
कर दे इस के दो टुकड़े
Parveen Shakir
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चार बजे
चोर की दुआ
ख़रगोशों की ग़ज़ल
किस की आँखों से गिरा है ये
आख़िरी गाली
हमें हमारी बीवियों से बचाओ
एक चेहलुम पर
ख़ुद-कुशी
जमाल-ज़ादा
बोर्ड ऑफ़ इंटरव्यू
जब शाम जन्नत में हुई
अदीब की महबूबा