जब चली अपनों की गर्दन पर चली
चूम लूँ मुँह आप की तलवार का
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अपने जी में जो ठान लेंगे आप
रंग लाएगी हमारी तंग-दस्ती एक दिन
कौन बुतों से रिश्ता जोड़े
खरी बातें ब-अंदाज़-ए-सुख़न कह दूँ तो क्या होगा
अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा
देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा
कहता है बाग़बान लिहाज़ा न चाहिए
चमन को आग लगाने की बात करता हूँ
मुस्तक़बिल रौशन-तर कहिए
जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ
'शाद' उफ़्ताद-ए-हर-नफ़स मत पूछ