देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा
और बे-सोचे ज़माने ने उसे ''औरत'' कहा
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(522) Peoples Rate This
रफ़्ता रफ़्ता मेरी अल-ग़रज़ी असर करती रही
ब-पास-ए-एहतियात-ए-आरज़ू ये बार-हा हुआ
खरी बातें ब-अंदाज़-ए-सुख़न कह दूँ तो क्या होगा
चमन को आग लगाने की बात करता हूँ
क़दम सँभल के बढ़ाओ कि रौशनी कम है
चाहते हैं घर बुतों के दिल में हम
कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगी
हमारी ग़ज़लों हमारे शेरों से तुम को ये आगही मिलेगी
जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया
अपने जी में जो ठान लेंगे आप
कौन बुतों से रिश्ता जोड़े
'शाद' उफ़्ताद-ए-हर-नफ़स मत पूछ