अकेला Poetry (page 22)

किस ने सदा दी कौन आया है

आज़ाद गुलाटी

ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था

आज़ाद गुलाटी

दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज

आज़ाद गुलाटी

कोई न देखे गूँज हवा की

अय्यूब ख़ावर

घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच

अय्यूब ख़ावर

अब तो आए नज़र में जो भी हो

अय्यूब ख़ावर

ख़ुश बहुत आते हैं मुझ को रास्ते दुश्वार से

औरंगज़ेब

इश्क़ से मैं डर चुका था डर चुका तो तुम मिले

औरंगज़ेब

इश्क़ पागल-पन में संजीदा न हो जाए कहीं

आतिफ़ ख़ान

ग़म के बादल दिल-ए-नाशाद पे ऐसे छाए

अतहर राज़

तू मिला था और मेरे हाल पर रोया भी था

अतहर नफ़ीस

सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं

अतहर नफ़ीस

न मंज़िल हूँ न मंज़िल-आश्ना हूँ

अतहर नफ़ीस

क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ

अतहर नफ़ीस

दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो

अतहर नफ़ीस

कोई नहीं हमारा पुर्सान-ए-हाल अब के

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

सुलगती रेत की क़िस्मत में दरिया लिख दिया जाए

अतीक़ अंज़र

जिस की ख़ातिर मैं ने दुनिया की तरफ़ देखा न था

अतीक़ अंज़र

आज भी जिस की ख़ुश्बू से है मतवाली मतवाली रात

अताउर्रहमान जमील

एक फ़लर्ट लड़की

अताउल हक़ क़ासमी

सर पे सूरज हो मगर साया न हो ऐसा न था

अता आबिदी

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

अनजाने लोगों को हर सू चलता फिरता देख रहा हूँ

असरार ज़ैदी

अनजाने लोगों को हर सू चलता फिरता देख रहा हूँ

असरार ज़ैदी

ख़िज़ाँ का मौसम

असरा रिज़वी

ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ

असलम महमूद

रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं

असलम आज़ाद

न दश्त ओ दर से अलग था न जंगलों से जुदा

असलम आज़ाद

रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं

असलम आज़ाद

बस एक बार उसे रौशनी में देखा था

असलम आज़ाद

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