अलगाव Poetry (page 22)

हर किताब-ए-सोहबत-ए-रंगीं के मअ'नी देख कर

दाऊद औरंगाबादी

आज बदली है हवा साक़ी पिला जाम-ए-शराब

दाऊद औरंगाबादी

एक और शराबी शाम

दर्शिका वसानी

उन के मिलने का ब-ज़ाहिर तो यक़ीं कोई नहीं

दामोदर ठाकुर ज़की

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

काएनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे

चित्रांश खरे

हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने

चरख़ चिन्योटी

तय हुआ दिन कि खुले शाम के बिस्तर चलिए

चराग़ बरेलवी

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

क़तरा क़तरा एहसास

चन्द्रभान ख़याल

सभी सम्तों को ठुकरा कर उड़ी जाए

चंद्र प्रकाश शाद

हर इक इम्कान तक पस्पाई है अपनी

चंद्र प्रकाश शाद

ले उड़ा रंग फ़लक जल्वा-ए-रा'नाई का

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

बिस्मिल आग़ाई

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

भवेश दिलशाद

वो चुप था दीदा-ए-नम बोलते थे

भारत भूषण पन्त

रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं

भारत भूषण पन्त

मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी

भारत भूषण पन्त

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

ख़्वाहिशों से वलवलों से दूर रहना चाहिए

भारत भूषण पन्त

कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे

भारत भूषण पन्त

दानिस्ता जो हो न सके नादानी से हो जाता है

भारत भूषण पन्त

आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो

बेख़ुद देहलवी

दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं

बेख़ुद देहलवी

उन की हसरत भी नहीं मैं भी नहीं दिल भी नहीं

बेखुद बदायुनी

जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे

बेकल उत्साही

बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई

बासिर सुल्तान काज़मी

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी

चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है

बशीर महताब

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