अलगाव Poetry (page 20)
हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते
फ़रहत शहज़ाद
शाम कहती है कोई बात जुदा सी लिक्खूँ
फ़रहत शहज़ाद
हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते
फ़रहत शहज़ाद
दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है
फ़रहत शहज़ाद
हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा
फ़रहत एहसास
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
फ़रहत एहसास
हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में
फ़रहत एहसास
उस तरफ़ तू तिरी यकताई है
फ़रहत एहसास
तन्हाई के आब-ए-रवाँ के साहिल पर बैठा हूँ मैं
फ़रहत एहसास
फिर वही मौसम-ए-जुदाई है
फ़रहत एहसास
मैं महफ़िल-बाज़ घबरा कर हुआ तन्हाई वाला
फ़रहत एहसास
ख़ूब होनी है अब इस शहर में रुस्वाई मिरी
फ़रहत एहसास
ईमाँ का लुत्फ़ पहलू-ए-तश्कीक में मिला
फ़रहत एहसास
हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की
फ़रहत एहसास
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
फ़रहत एहसास
हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है
फ़रहत एहसास
दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है
फ़रहत एहसास
अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना
फ़रहत एहसास
ग़ुबार दिल पे बहुत आ गया है धो लें आज
फ़रीद जावेद
राख उड़ती हुई बालों में नज़र आती है
फ़रह इक़बाल
ख़ुद ही दिया जलाती हूँ
फ़रह इक़बाल
कभी तुम भीगने आना मिरी आँखों के मौसम में
फ़रह इक़बाल
एक मुद्दत से यहाँ ठहरा हुआ पानी है
फ़रह इक़बाल
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
फ़ानी बदायुनी
तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं
फ़ना बुलंदशहरी
अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता
फ़ना बुलंदशहरी
आँखों में नमी आई चेहरे पे मलाल आया
फ़ना बुलंदशहरी
जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में
फ़ैज़ी
रात गहरी है मगर एक सहारा है मुझे
फ़ैज़ी
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