अलगाव Poetry (page 21)

सुब्ह-ए-नौ लाती है हर शाम तुम्हें क्या मा'लूम

फ़ैज़ुल हसन

लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए

फ़ैज़ुल हसन

याद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात मिरी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरी जाँ अब भी अपना हुस्न वापस फेर दे मुझ को

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मरसिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कहाँ जाओगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ रौशनियों के शहर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तफ़्सील मसाफ़त की

फ़हमीदा रियाज़

ज़िंदगी से मुकालिमा

फ़हीम शनास काज़मी

सब्ज़ रुतों में क़दीम घरों की ख़ुशबू

फ़हीम शनास काज़मी

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या

एजाज़ सिद्दीक़ी

वो एक पल की रिफ़ाक़त भी क्या रिफ़ाक़त थी

एजाज़ रहमानी

कतबा

एजाज़ फ़ारूक़ी

मेरी मौत के मसीहा!

एजाज़ अहमद एजाज़

ऐ काश हो बरसात ज़रा और ज़रा और

अहया भोजपुरी

बीमारी की ख़बर

एहतिशाम हुसैन

बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई

एहतराम इस्लाम

इश्क़ का परचा

दिलावर फ़िगार

चोर-साहिब से दरख़्वास्त

दिलावर फ़िगार

इक दिन जो यूँही पर्दा-ए-अफ़्लाक उठाया

दिलावर अली आज़र

मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे

दिलावर अली आज़र

ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ

दिलावर अली आज़र

आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

आईने में देख के चेहरा बे-शक मैं हैरान हुआ

देवमणि पांडेय

दोनों में कितना फ़र्क़ मगर दोनों का हासिल तन्हाई

दीप्ति मिश्रा

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