एक और शराबी शाम

चलो आज एक और कोशिश होगी

फिर एक शाम डूब जाएगी शराब में

ज़िंदगी के अँधेरे सर्द टुकड़े

जाम में घुल कर होंठों के हवाले होंगे

ज़बाँ पे थिरकती तिश्नगी धीरे धीरे

हल्क़ तक फैल जाएगी

ख़ामोशी का लिबास पहने

कोने में क़ैद तन्हाई रिहा होगी

और नस नस में दौड़ कर रक़्स करेगी

मेरे लहू में बह रहे उस बे-क़ाबू शख़्स को

सँभालने की मशक़्क़त होगी

सुलगती रूह उस की यादों की भाप में

तप कर सुर्ख़ लाल हो जाएगी

आँखों से गर्म बुलबुले टपकने लगेंगे

जाम-दर-जाम अंदरूनी उबाल

पिघलता जाएगा

जब आँखों के पैमाने बिल्कुल ख़ाली हो जाएँगे

तब उस लाल बिस्तर पर

मेरी नींदें तुम्हारे ख़्वाबों को

आग़ोश में ले कर सो जाएगी

(1857) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ek Aur Sharabi Sham In Hindi By Famous Poet Darshika Wasani. Ek Aur Sharabi Sham is written by Darshika Wasani. Complete Poem Ek Aur Sharabi Sham in Hindi by Darshika Wasani. Download free Ek Aur Sharabi Sham Poem for Youth in PDF. Ek Aur Sharabi Sham is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Aur Sharabi Sham with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.