तुम्हारी आँखें

तुम्हारी आँखें तुम वहीं तो बसते हो

एक जिस्म को दुनिया ने तुम्हारा नाम दिया

तुम्हें पाया तुम्हारी आँखों में है मैं ने

उन दो पलकों ने छुआ है मुझे

तुम्हारी उँगलियों के जादुई स्पर्श सी

मेरे चेहरे की नर्म गुलाबी गलियों में खोई

मेरी ज़ुल्फ़ों में उलझी हुई रेशम से तर-ब-तर ये आँखें

कभी होंठ बन कर तुम्हारी साँसों की आहट को

चुपके से मेरे कानों में रख जाती है

तुम्हारे ज़ेहन में पनप रहे हर

नाज़ुक जज़्बात की ख़ुशबू है तुम्हारी आँखें

मेरे काँपते होंटों पे तुम्हारे होंटों के

निशान है तुम्हारी आँखें

वही तो है जो हथेलियाँ बन कर मज़बूती से

मेरा हाथ थामे हुए है अब तक

तुम्हारे दिल सी धड़कती है तुम्हारी आँखें

मेरे अश्कों का हर एक क़तरा

उन की नमी में डूब कर एक हो जाता है

रात के सन्नाटे में मज़बूत बाहें बन कर

अपनी ठंडक में सुला देती है

तुम्हारे क़दम बन कर साथ चली है जैसे तुम चलते

उस ने लूटा नहीं लौटाया है मुझे अपने आप को

इन आँखों में एक घर बसाया है मैं ने

तुम्हारे जिस्म में जुड़ी है मगर

मेरी है तुम्हारी आँखें

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