वसल Poetry (page 13)

तुम्हारे इश्क़ में किस किस तरह ख़राब हुए

हैदर क़ुरैशी

शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था

हैदर अली आतिश

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

हैदर अली आतिश

वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा

हैदर अली आतिश

ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के

हैदर अली आतिश

शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था

हैदर अली आतिश

रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए

हैदर अली आतिश

मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था

हैदर अली आतिश

क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके

हैदर अली आतिश

कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से

हैदर अली आतिश

जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम

हैदर अली आतिश

आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था

हैदर अली आतिश

आबले पावँ के क्या तू ने हमारे तोड़े

हैदर अली आतिश

याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात

हफ़ीज़ जौनपुरी

याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात

हफ़ीज़ जौनपुरी

वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है

हफ़ीज़ जौनपुरी

उन की ये ज़िद कि मिरे घर में न आए कोई

हफ़ीज़ जौनपुरी

शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस

हफ़ीज़ जौनपुरी

शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे

हफ़ीज़ जौनपुरी

पी हम ने बहुत शराब तौबा

हफ़ीज़ जौनपुरी

पत्थर से न मारो मुझे दीवाना समझ कर

हफ़ीज़ जौनपुरी

मिज़्गाँ हैं ग़ज़ब अबरू-ए-ख़म-दार के आगे

हफ़ीज़ जौनपुरी

ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला

हफ़ीज़ जौनपुरी

'हफ़ीज़' वस्ल में कुछ हिज्र का ख़याल न था

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल है तो तिरे वस्ल के अरमान बहुत हैं

हफ़ीज़ जौनपुरी

आशिक़ सा बद-नसीब कोई दूसरा न हो

हफ़ीज़ जालंधरी

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