वसल Poetry (page 14)

आख़िर एक दिन शाद करोगे

हफ़ीज़ जालंधरी

तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं

हादी मछलीशहरी

बहुत दिनों में वो आए हैं वस्ल की शब है

हबीब मूसवी

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

हबीब मूसवी

नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना

हबीब आरवी

नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

दिल के हर जुज़्व में जुदाई है

ग़ुलाम मौला क़लक़

बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा

ग़मगीन देहलवी

जो न वहम-ओ-गुमान में आवे

ग़मगीन देहलवी

विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागाना

ग़ालिब

दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं

ग़ालिब

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

ग़ालिब

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में

ग़ालिब

ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ

ग़ालिब

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