वसल Poetry (page 12)

करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस

हातिम अली मेहर

ऐसे कुछ लोग भी मिट्टी पे उतारे जाएँ

हस्सान अहमद आवान

कहाँ हम कहाँ वस्ल-ए-जानाँ की 'हसरत'

हसरत मोहानी

पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया

हसरत मोहानी

कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँ

हसरत मोहानी

घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

यार इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-ज़ार ही रहा

हसरत अज़ीमाबादी

साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश

हसरत अज़ीमाबादी

क्या कहूँ तुझ से मिरी जान मैं शब का अहवाल

हसरत अज़ीमाबादी

है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला

हसरत अज़ीमाबादी

चाहे सो हमें कर तू गुनहगार हैं तेरे

हसरत अज़ीमाबादी

रात गुज़री कि शब-ए-वस्ल का पैग़ाम मिला

हसन नईम

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

आँखों से टपके ओस तो जाँ में नमी रहे

हसन नईम

ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले

हसन बरेलवी

वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब

हसन बरेलवी

आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का

हसन बरेलवी

धड़कती क़ुर्बतों के ख़्वाब से जागे तो जाना

हसन अब्बास रज़ा

शाएरी पूरा मर्द और पूरी औरत माँगती है

हसन अब्बास रज़ा

हमें तो ख़्वाहिश-ए-दुनिया ने रुस्वा कर दिया है

हसन अब्बास रज़ा

बंद-ए-क़बा पे हाथ है शरमाए जाते हैं

हक़ीर

ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ

हक़ीर

यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा

हनीफ़ अख़गर

इस तरह मह-रुख़ों को पशेमाँ करेंगे हम

हनीफ़ अख़गर

बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो

हम्माद नियाज़ी

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

हम्माद नियाज़ी

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

मौसम-ए-हिज्र के आने के शिकायत नहीं की

हलीम कुरेशी

दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

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