वसल Poetry (page 10)

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

मिली है कैसे गुनाहों की ये सज़ा मुझ को

राशिद तराज़

दर जो खोला है कभी उस से शनासाई का

राशिद नूर

इन हसीनों की मोहब्बत का भरोसा क्या है

रशीद रामपुरी

है निहायत सख़्त शान-ए-इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त

रशीद रामपुरी

वस्ल के दिन का इशारा है कि ढल जाऊँगा

रशीद लखनवी

जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने

रशीद लखनवी

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं

रशीद लखनवी

तरह-ए-कशां जिसे हिज्रान-ए-यार कहते हैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है

रसा रामपुरी

जी चाहा जिधर छोड़ दिया तीर अदा को

रसा रामपुरी

हर इक दरवेश का क़िस्सा अलग है

रसा चुग़ताई

परिंदे होते अगर हम हमारे पर होते

रऊफ़ अमीर

रोता हमें जो देखा दिल उस का पिघल गया

रंजूर अज़ीमाबादी

मैं और हम-आग़ोश हूँ उस रश्क-ए-परी से

रंजूर अज़ीमाबादी

हमदमो क्या मुझ को तुम उन से मिला सकते नहीं

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें

राना आमिर लियाक़त

ज़रा ज़रा सी बात पर वो मुझ से बद-गुमाँ रहे

रमेश कँवल

कभी बुलाओ, कभी मेरे घर भी आया करो

रमेश कँवल

इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा

रमेश कँवल

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रक्खा गया

रख़्शंदा नवेद

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रखा गया

रख़्शंदा नवेद

क़ुरआँ किताब है रुख़-ए-जानाँ के सामने

रजब अली बेग सुरूर

जमाल-ज़ादा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी

रईस अमरोहवी

हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है

इरफ़ान सत्तार

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

इरफ़ान सत्तार

पाबंद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ही रहे गो दर्द-ए-दहिंदाँ और सही

इरफ़ान अहमद मीर

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