वसल Poetry (page 9)

ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी

रियाज़ ख़ैराबादी

तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे

रियाज़ ख़ैराबादी

'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है

रियाज़ ख़ैराबादी

मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी

रियाज़ ख़ैराबादी

मैं उठा रक्खूँ न कुछ इन के लिए

रियाज़ ख़ैराबादी

ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

किसी से वस्ल में सुनते ही जान सूख गई

रियाज़ ख़ैराबादी

जिस दिन से हराम हो गई है

रियाज़ ख़ैराबादी

जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट

रियाज़ ख़ैराबादी

दिल ढूँढती है निगह किसी की

रियाज़ ख़ैराबादी

दर्द हो तो दवा करे कोई

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

छुप के घर ग़ैर के जाया न करो

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

रिन्द लखनवी

चराग़-ए-ज़ीस्त मद्धम है अभी तू नम न कर आँखें

रेनू नय्यर

मुझे ग़रज़ है सितारे न माहताब के साथ

रहमान फ़ारिस

शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा

रेहाना रूही

नींद आँखों में मुसलसल नहीं होने देता

रेहाना रूही

नज़्ज़ारा-ए-जमाल ने सोने नहीं दिया

रेहाना रूही

चुपके से मुझ को आज कोई ये बता गया

रज़ी रज़ीउद्दीन

वो शाख़-ए-गुल कि जो आवाज़-ए-अंदलीब भी थी

राज़ी अख्तर शौक़

संग हैं नावक-ए-दुश्नाम हैं रुस्वाई है

राज़ी अख्तर शौक़

हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

ख़िज़ाँ की बात न ज़िक्र-ए-बहार करते हैं

रशक खलीली

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