भ्रम Poetry (page 6)

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ

ग़ालिब

गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

अगर हो चश्म-ए-हक़ीक़त तो देख क्या हूँ मैं

ग़व्वास क़ुरैशी

हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं

गौहर होशियारपुरी

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ

फ़ारूक़ मुज़्तर

नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ

फ़ारिग़ बुख़ारी

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है

फ़रहत कानपुरी

उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है

फ़रहत एहसास

फिर वही मौसम-ए-जुदाई है

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास

उन्हें गुमाँ कि मुझे उन से रब्त है 'सालिम'

फ़रहान सालिम

मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायद

फ़रहान सालिम

कैसे मंज़र हैं जो इदराक में आ जाते हैं

फ़रह इक़बाल

न इंतिहा की ख़बर है न इंतिहा मालूम

फ़ानी बदायुनी

न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम

फ़ानी बदायुनी

ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ

फ़ानी बदायुनी

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