याद Poetry (page 90)

अजीब रंग तिरे हुस्न का लगाव में था

अहमद नदीम क़ासमी

अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की

अहमद नदीम क़ासमी

मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में

अहमद मुश्ताक़

भूल गई वो शक्ल भी आख़िर

अहमद मुश्ताक़

अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है

अहमद मुश्ताक़

ये कौन ख़्वाब में छू कर चला गया मिरे लब

अहमद मुश्ताक़

शाम-ए-ग़म याद है कब शम्अ' जली याद नहीं

अहमद मुश्ताक़

शाम होती है तो याद आती है सारी बातें

अहमद मुश्ताक़

रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू

अहमद मुश्ताक़

मुसलसल याद आती है चमक चश्म-ए-ग़ज़ालाँ की

अहमद मुश्ताक़

ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं

अहमद मुश्ताक़

ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना

अहमद मुश्ताक़

कैसे उन्हें भुलाऊँ मोहब्बत जिन्हों ने की

अहमद मुश्ताक़

कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है

अहमद मुश्ताक़

इश्क़ में कौन बता सकता है

अहमद मुश्ताक़

इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए

अहमद मुश्ताक़

चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया

अहमद मुश्ताक़

अब वो गलियाँ वो मकाँ याद नहीं

अहमद मुश्ताक़

अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए

अहमद मुश्ताक़

अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए

अहमद मुश्ताक़

दिलों पे ज़ख़्म लगा के हज़ार गुज़री बहार

अहमद मासूम

यूँ ही कब तक ऊपर ऊपर देखा जाए

अहमद महफ़ूज़

मौजूद हैं कितने ही तुझ से भी हसीं कर के

अहमद जावेद

नींद से उठ कर वो कहना याद है

अहमद हुसैन माइल

समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट

अहमद हुसैन माइल

महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़

अहमद हुसैन माइल

सफ़र ऐसा है कहाँ का

अहमद हमेश

मकाशफ़ा

अहमद हमेश

1973 की एक नज़्म

अहमद हमेश

ये तेरी चाह भी क्या तेरी आरज़ू भी क्या

अहमद हमदानी

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