याद Poetry (page 91)

कुछ उस को याद करूँ उस का इंतिज़ार करूँ

अहमद हमदानी

अज़ल अबद से बहुत दूर झूमते थे हम

अहमद हमदानी

यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है

अहमद फ़राज़

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है

अहमद फ़राज़

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब

अहमद फ़राज़

भली सी एक शक्ल थी

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

अहमद फ़राज़

अभी हम ख़ूबसूरत हैं

अहमद फ़राज़

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

अहमद फ़राज़

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त

अहमद फ़राज़

तेरी बातें ही सुनाने आए

अहमद फ़राज़

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

अहमद फ़राज़

पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे

अहमद फ़राज़

मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला

अहमद फ़राज़

ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा

अहमद फ़राज़

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे

अहमद फ़राज़

जब यार ने रख़्त-ए-सफ़र बाँधा कब ज़ब्त का पारा उस दिन था

अहमद फ़राज़

जब तुझे याद करें कार-ए-जहाँ खेंचता है

अहमद फ़राज़

जब तिरी याद के जुगनू चमके

अहमद फ़राज़

हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं

अहमद फ़राज़

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

अहमद फ़राज़

हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो

अहमद फ़राज़

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

अहमद फ़राज़

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

अहमद फ़राज़

क़र्या-ए-इंतिज़ार में उम्र गँवा के आए हैं

अहमद अज़ीम

ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है

अहमद अज़ीम

उस लम्हे के लिए मुझे फ़ुर्सत नहीं

अहमद आज़ाद

जो मेरे मरने का तमाशा नहीं देखना चाहती

अहमद आज़ाद

पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए

अहमद अता

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