याद Poetry (page 93)

कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में

आफ़ताब हुसैन

कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन

इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है

आफ़ताब हुसैन

ये रेग-ए-रवाँ याद-दहानी तो नहीं क्या

आफ़ताब अहमद

उम्र-ए-रफ़्ता मैं तिरे हाथ भी क्या आया हूँ

आफ़ताब अहमद

सुख में होता है हाफ़िज़ा बेकार

अफ़सर मेरठी

वतन का राग

अफ़सर मेरठी

यास है हसरत है ग़म है और शब-ए-दीजूर है

अफ़सर मेरठी

ख़बर देती है याद करता है कोई

अफ़सर इलाहाबादी

वही जो हया थी निगार आते आते

अफ़सर इलाहाबादी

न हो या रब ऐसी तबीअत किसी की

अफ़सर इलाहाबादी

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

ख़याल

अफ़रोज़ आलम

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है

अफ़रोज़ आलम

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में

आदिल मंसूरी

बुध

आदिल मंसूरी

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

आदिल मंसूरी

फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ

आदिल मंसूरी

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

बदन पर नई फ़स्ल आने लगी

आदिल मंसूरी

सदाएँ एक सी यकसानियत में डूब जाती हैं

अदीम हाशमी

सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है

अदीम हाशमी

कुछ हिज्र के मौसम ने सताया नहीं इतना

अदीम हाशमी

किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया

अदीम हाशमी

तू जो चाहे भी तो सय्याद नहीं होने के

अदील ज़ैदी

अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा

अदा जाफ़री

रोज़-ओ-शब की कोई सूरत तो बना कर रख्खूँ

अदा जाफ़री

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

अदा जाफ़री

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा

अदा जाफ़री

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