याद Poetry (page 94)

हर गाम सँभल सँभल रही थी

अदा जाफ़री

गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई

अदा जाफ़री

बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़

अदा जाफ़री

तज्दीद-ए-रिवायात-ए-कुहन करते रहेंगे

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

शिकस्त-ए-अहद पर इस के सिवा बहाना भी क्या

अबुल हसनात हक़्क़ी

रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे

अबु मोहम्मद सहर

इश्क़ को हुस्न के अतवार से क्या निस्बत है

अबु मोहम्मद सहर

हमें तन्हाइयों में यूँ तो क्या क्या याद आता है

अबु मोहम्मद सहर

वक़्त ग़मनाक सवालों में न बर्बाद करें

अबु मोहम्मद सहर

सब की आँखों में जो समाया था

अबु मोहम्मद सहर

वक़्त-ए-रुख़्सत भीगती पलकों का मंज़र याद है

अबसार अब्दुल अली

जो नहीं लगती थी कल तक अब वही अच्छी लगी

अबसार अब्दुल अली

शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन

आबरू शाह मुबारक

निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है

आबरू शाह मुबारक

तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा

अबरार आज़मी

शायद तुम्हारी याद मिरे पास आ गई

अबरार आज़मी

किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा

अबरार आज़मी

ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था

अबरार आज़मी

मरकज़-ए-जाँ तो वही तू है मगर तेरे सिवा

अबरार अहमद

गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है

अबरार अहमद

मिट्टी से एक मुकालिमा

अबरार अहमद

क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा

अबरार अहमद

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

अबरार अहमद

हम ने रक्खा था जिसे अपनी कहानी में कहीं

अबरार अहमद

इक फ़रामोश कहानी में रहा

अबरार अहमद

न घर सुकून-कदा है न कारख़ाना-ए-इश्क़

आबिद वदूद

हाथ में माहताब हो जैसे

आबिद वदूद

न जाने रब्त-ए-मसर्रत है किस क़दर ग़म से

आबिद नामी

ज़िंदगी भर जिन्हों ने देखे ख़्वाब

आबिद मुनावरी

क्यूँ न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा

आबिद मुनावरी

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