जाति Poetry (page 18)

पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ

चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी

मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं

चकबस्त ब्रिज नारायण

उन्हें ढूँडो

बुशरा एजाज़

दास्तान-ए-शमअ' थी या क़िस्सा-ए-परवाना था

ब्रहमा नन्द जलीस

मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी

भारत भूषण पन्त

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

भारत भूषण पन्त

कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे

भारत भूषण पन्त

जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं

भारत भूषण पन्त

दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है

भारत भूषण पन्त

सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़

बेदम शाह वारसी

रात उस तुनुक-मिज़ाज से कुछ बात बढ़ गई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ज़ाहिर मिरी शिकस्त के आसार भी नहीं

बशीर सैफ़ी

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

बशीर बद्र

हम तिरे बंदे हमारा तू ख़ुदा-वंद-ए-करीम

बशीर-उन-निसा बेगम बर्क़

क्या बिछड़ कर रह गया जाने भरी बरसात में

बशीर मुंज़िर

या मह-ओ-साल की दीवार गिरा दी जाए

बशीर अहमद बशीर

गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ

बशीर अहमद बशीर

इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया

बशीर अहमद बशीर

गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए

बलवान सिंह आज़र

बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ

बलवान सिंह आज़र

हमें रास आनी है राहों की गठरी

बकुल देव

नवेद-ए-सफ़र

बद्र वास्ती

महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

वतन

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए

अज़्म बहज़ाद

ज़मीर बेचने वाले वो तेरा सौदा-गर

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

जहान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का सबात ले के गया

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

तुम्हारी ज़ात से मंसूब है दीवानगी मेरी

अज़ीज़ वारसी

हयूला

अज़ीज़ तमन्नाई

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