ज़ीस्त Poetry (page 15)

न सियो होंट न ख़्वाबों में सदा दो हम को

एहसान दानिश

ज़मीन अपने ही मेहवर से हट रही होगी

दिलावर अली आज़र

सौग़ात

दाऊद ग़ाज़ी

क़िस्मत बुरे किसी के न इस तरह लाए दिन

दत्तात्रिया कैफ़ी

ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो

दर्शन सिंह

इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी

दर्शन सिंह

हश्र इक गुज़रा है वीराने पे घर होने तक

दानिश फ़राही

बुलंद ज़ीस्त का अपनी वक़ार हो न सका

दामोदर ठाकुर ज़की

जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़

चराग़ हसन हसरत

तन्हाई में आज उन से मुलाक़ात हुई है

चरख़ चिन्योटी

लौट चलिए

चन्द्रभान ख़याल

पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ

चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी

क्या हुस्न है यूसुफ़ भी ख़रीदार है तेरा

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था

बुशरा एजाज़

प्यार है वो

बिमल कृष्ण अश्क

जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे

बेखुद बदायुनी

रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही

बेकल उत्साही

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं

बहज़ाद लखनवी

मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं

बहज़ाद लखनवी

इक बेवफ़ा को दर्द का दरमाँ बना लिया

बहज़ाद लखनवी

दरिया ने कल जो चुप का लिबादा पहन लिया

बेदिल हैदरी

मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं

बेदम शाह वारसी

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

बेबाक भोजपुरी

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

हर गाम पे आवारगी-ओ-दर-ब-दरी में

बशीर अहमद बशीर

गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ

बशीर अहमद बशीर

जब छाई घटा लहराई धनक इक हुस्न-ए-मुकम्मल याद आया

बशर नवाज़

मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

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