ज़ीस्त Poetry (page 16)

मरहले ज़ीस्त के आसान हुए

बाक़ी सिद्दीक़ी

कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो

बाक़ी सिद्दीक़ी

दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है

बाक़र मेहदी

रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत

बख़्श लाइलपूरी

हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया

बख़्श लाइलपूरी

तारीक उजालों में बे-ख़्वाब नहीं रहना

अज़रा वहीद

जहाँ में हम जिसे भी प्यार के क़ाबिल समझते हैं

अज़ीज़ वारसी

जहाँ में हम जिसे भी प्यार के क़ाबिल समझते हैं

अज़ीज़ वारसी

आख़िर-ए-शब वो तेरी अंगड़ाई

अज़ीज़ वारसी

हमीं ने ज़ीस्त के हर रूप को सँवारा है

अज़ीज़ तमन्नाई

उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में

अज़ीज़ तमन्नाई

दहर में इक तिरे सिवा क्या है

अज़ीज़ तमन्नाई

बढ़ने दे अभी कशमकश-ए-तार-ए-नफ़स और

अज़ीज़ तमन्नाई

मैं वफ़ा का सौदागर

अज़ीज़ क़ैसी

अज़ल-अबद

अज़ीज़ क़ैसी

चारागर चुप हैं क्यूँ इलाज करें

अज़ीज़ लखनवी

हरे दरख़्त का शाख़ों से रिश्ता टूट गया

अज़हर नैयर

शहर को आतिश-ए-रंजिश के धुआँ तक देखूँ

अज़हर हाश्मी

अटूट अंग

अज़हर गौरी

यक़ीं बनाता है कोई गुमाँ बनाता है

आज़र तमन्ना

मिरे सुपुर्द कहाँ वो ख़ज़ाना करता था

अतीक़ुल्लाह

करता मैं अब किसी से कोई इल्तिमास क्या

अतहर नादिर

ढला जो दिन तो गया नूर-ए-आफ़्ताब भी साथ

अता हुसैन कलीम

मेहमान

असरार-उल-हक़ मजाज़

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

शैतान का फ़रमान

असरार जामई

हम भी थे गोशा-गीर कि गुमनाम थे बहुत

अासिफ़ जमाल

पर्दे मिरी निगाह के भी दरमियाँ न थे

अशरफ़ रफ़ी

जो गुज़रती है कहा करता हूँ

अशोक साहनी साहिल

दिमाग़-ओ-दिल में हलचल हो रही है

अशफ़ाक़ रशीद मंसूरी

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