ज़ीस्त Poetry (page 13)

नीलो

हबीब जालिब

यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो

हबीब जालिब

ये और बात तेरी गली में न आएँ हम

हबीब जालिब

अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ

हबीब जालिब

बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना

हबीब आरवी

न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है

गुलशन बरेलवी

वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा

गुलनार आफ़रीन

याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था

गुलनार आफ़रीन

वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा

गुलनार आफ़रीन

तेरी आँखों में जो नशा है पज़ीराई का

गोपाल मित्तल

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा

ग़ुलाम मौला क़लक़

हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़

ग़ुलाम मौला क़लक़

कट गई बे-मुद्दआ सारी की सारी ज़िंदगी

ग़ुलाम भीक नैरंग

कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

ग़ुलाम भीक नैरंग

हुजूम-ए-दर्द मिला इम्तिहान ऐसा था

ग़यास अंजुम

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से

ग़ालिब

ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है

जोर्ज पेश शोर

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया

फ़ितरत अंसारी

ज़िंदगी साज़-ए-शिकस्ता की फ़ुग़ाँ ही तो नहीं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

किसी के सामने इस तरह सुर्ख़-रू होगी

फ़सीह अकमल

मुझे खोल ताज़ा हवा में रख

फर्रुख यार

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