ज़ुल्फ़ Poetry (page 22)

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

मस्तों के जो उसूल हैं उन को निभा के पी

फ़य्याज़ हाशमी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में

फ़ारिग़ बुख़ारी

सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाह

फ़रहत एहसास

ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था

फ़रहत एहसास

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

फ़रहत एहसास

पैकर-ए-अक़्ल तिरे होश ठिकाने लग जाएँ

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए

फ़रहत एहसास

इक हवा आई है दीवार में दर करने को

फ़रहत एहसास

दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा

फ़रहत एहसास

यक़ीन

फ़रीद इशरती

ग़म का बादल

फ़रीद इशरती

सारे मंज़र दिलकश थे हर बात सुहानी लगती थी

फ़रह इक़बाल

जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं

फ़राग़ रोहवी

मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख

फ़ानी बदायुनी

नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना

फ़ानी बदायुनी

या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

बहादुरी जो नहीं है तो बुज़दिली भी नहीं

फख्र ज़मान

रेशम ज़ुल्फ़ के तार भी बातें करते हैं

फख़्र अब्बास

मौज़ू-ए-सुख़न

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कोई आशिक़ किसी महबूबा से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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