सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की
जो नींद आई तिरे ग़म की छाँव में आई
Wasi Shah
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अजीब शय है तसव्वुर की कार-फ़रमाई
जो तबस्सुमों से हो गुल-फ़शाँ वही लब हँसी को तरस गए
ख़ुशी विसाल की अब है न रंज-ए-तन्हाई
कभी नग़्मा-ए-ग़म-ए-आरज़ू कभी ज़िंदगी की पुकार हम
तारीख़-ए-काएनात-ए-इबादत जुनूँ से है
नफ़स नफ़स पे यहाँ रहमतों की बारिश है
कहाँ से आ गया कहाँ ये शाम भी कहाँ हुई
मलामातों से जुनूँ में न कुछ कमी आई
फैला फ़ज़ा में नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-मर्हबा