दर्पण Poetry (page 11)

वो एक चेहरा जो उस से गुरेज़ कर जाता

सादिक़

तुझे तलाश है जिस की गुज़र गया कब का

साबिर अदीब

आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो

साबिर

कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए

सबा जायसी

हो गई सारी पशेमानी अबस

सबा जायसी

बू-ए-ख़ुश की तरह हर सम्त बिखर जाऊँगा

सबा जायसी

उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ

सबा अकबराबादी

हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है

सबा अकबराबादी

चहार सम्त से कल तक जो घर दमकता था

रिज़्वानुल्लाह

दिल जो घबराया तो उठ कर दोस्तों में आ गया

रियाज़ साग़र

वीनस

रियाज़ लतीफ़

हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए

रियाज़ लतीफ़

देखिएगा सँभल कर आईना

रियाज़ ख़ैराबादी

उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना

रियाज़ ख़ैराबादी

इक परी का फिर मुझे शैदा किया

रिन्द लखनवी

फिर तुम रुख़-ए-ज़ेबा से नक़ाब अपने उठा दो

रिफ़अत सेठी

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

रियाज़ मजीद

आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल

रियाज़ मजीद

वो मुंतज़िर हैं हमारे तो हम किसी के हैं

रेहाना रूही

किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ में जल बुझे हम लोग

रेहाना रूही

था मिरी जस्त पे दरिया बड़ी हैरानी में

राज़ी अख्तर शौक़

रोज़ इक शख़्स चला जाता है ख़्वाहिश करता

राज़ी अख्तर शौक़

जिस ने बनाया हर आईना मैं ही था

राज़ी अख्तर शौक़

जभी तो ज़ख़्म भी गहरा नहीं है

राज़ी अख्तर शौक़

इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है

राज़ी अख्तर शौक़

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ

रज़ा हमदानी

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

रौनक़ रज़ा

हमारे ख़्वाब हमारी पसंद होते गए

रौनक़ रज़ा

बेहतर है अब दूर रहो तुम टेसू के इन फूलों से

रौनक़ नईम

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