आंखें Poetry (page 29)

हम आवारा गाँव गाँव बस्ती बस्ती फिरने वाले

हबीब जालिब

दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो

हबीब जालिब

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

गो बरसती नहीं सदा आँखें

गुलज़ार

भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में

गुलज़ार

वक़्त-2

गुलज़ार

सिद्धार्थ की एक रात

गुलज़ार

बर्फ़ पिघलेगी

गुलज़ार

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

गुलज़ार

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं

गुलज़ार

जब भी ये दिल उदास होता है

गुलज़ार

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलज़ार

आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ

गुलज़ार

आप ही नाख़ुदा रहा हूँ मैं

ग़ुलाम रसूल तारिक़

ज़िंदगी की रौशनी के इस्तिआरे ख़्वाब हैं

गुफ़्तार ख़याली

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

मुंतज़िर आँखें हैं मेरी शाम से

गोविन्द गुलशन

राह से मुझ को हटा कर ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हर बच्चा आँखें खोलते ही करता है सवाल मोहब्बत का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है

ग़ुलाम मौला क़लक़

नहीं आसाँ किसी के वास्ते तख़्मीना मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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