अच्छा Poetry (page 14)

अब क्या बताऊँ शहर ये कैसा लगा मुझे

फ़िरदौस गयावी

मैं हूँ दिल है तन्हाई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है

फ़िराक़ गोरखपुरी

चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

कुछ उक़दे ऐसे होते हैं जो न ही खुलें तो बेहतर है

फ़य्याज़ तहसीन

कभी याद-ए-ख़ुदा कभी इश्क़-ए-बुताँ यूँही सारी उम्र गँवा बैठा

फ़य्याज़ तहसीन

हमारे दिल की बजा दी है उस ने ईंट से ईंट

फ़व्वाद अहमद

अच्छा लगता है

फ़ातिमा हसन

आख़िरी लफ़्ज़

फ़ातिमा हसन

किस से बिछड़ी कौन मिला था भूल गई

फ़ातिमा हसन

जैसा तुम चाहोगे वैसा नहीं होने वाला

फ़सीहुल्ला नक़ीब

जड़ों से सूखता तन्हा शजर है

फ़सीह अकमल

राह-ए-गुम-कर्दा सर-ए-मंज़िल भटक कर आ गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

बहुत धोका किया ख़ुद को मगर क्या कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ शफ़क़

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

किसी की राह में 'फ़ारूक़' बर्बाद-ए-वफ़ा हो कर

फ़ारूक़ बाँसपारी

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

जन्म जन्म की कहानी

फ़रखंदा नसरीन हयात

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता

फ़रहत एहसास

ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा

फ़रहत एहसास

शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ

फ़रहान सालिम

ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है

फ़राग़ रोहवी

बीमार तिरे जी से गुज़र जाएँ तो अच्छा

फ़ानी बदायुनी

ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई

फ़ानी बदायुनी

नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना

फ़ानी बदायुनी

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें

फ़ानी बदायुनी

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