आदमी Poetry (page 16)

'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

तब

बद्र मुनीरुद्दीन

गुम-शुदा मौसम का आँखों में कोई सपना सा था

बदनाम नज़र

महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

मान लो साहिबो कहा मेरा

बाबर रहमान शाह

कैफ़ियत-ए-दिल-ए-हज़ीं हम से नहीं बयाँ हुई

बीएस जैन जौहर

हज़ार बार आज़मा चुका है मगर अभी आज़मा रहा है

अज़ीज़ तमन्नाई

उफ़ुक़ के उस पार कर रहा है कोई मिरा इंतिज़ार शायद

अज़ीज़ तमन्नाई

ग़रीब शहर

अज़ीज़ क़ैसी

उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह

अज़ीज़ नबील

माना कि ज़िंदगी में है ज़िद का भी एक मक़ाम

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

वो साअ'त सूरत-ए-चक़माक़ जिस से लौ निकलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है

अज़ीज़ हामिद मदनी

इस गुफ़्तुगू से यूँ तो कोई मुद्दआ नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ख़ूबसूरत है सिर्फ़ बाहर से

अज़हर नवाज़

नींद पलकों पे यूँ रखी सी है

अज़हर नवाज़

इस को कोई ग़म नहीं है जिस का घर पत्थर का है

अज़हर नैयर

वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए

अज़हर इनायती

शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की

अज़हर इनायती

क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा

अज़हर इनायती

इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा

अज़हर इनायती

ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था

अज़हर इनायती

जाते हुए नहीं रहा फिर भी हमारे ध्यान में

अज़हर फ़राग़

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