आदमी Poetry (page 15)

गुम-शुदा आदमी का इंतिज़ार

चन्द्रभान ख़याल

ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ

बबल्स होरा सबा

यही समझा हूँ बस इतनी हुई है आगही मुझ को

ब्रहमा नन्द जलीस

ऐ 'जलीस' अब इक तुम्हीं में आदमियत हो तो हो

ब्रहमा नन्द जलीस

कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

महफ़िल वही मकान वही आदमी वही

बेख़ुद देहलवी

ऐ शैख़ आदमी के भी दर्जे हैं मुख़्तलिफ़

बेख़ुद देहलवी

और साक़ी पिला अभी क्या है

बेख़ुद देहलवी

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'

बेकल उत्साही

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है

बेदम शाह वारसी

ख़ंजर तलाश करता है

बेबाक भोजपुरी

हक़-केश की फ़रियाद

बेबाक भोजपुरी

बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है

बेबाक भोजपुरी

नहीं ये आदमी का काम वाइ'ज़

बयान मेरठी

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं

बशीर बद्र

इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं

बशीर बद्र

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे

बशीर बद्र

वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो

बशीर बद्र

सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे

बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

बशीर बद्र

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

बशीर बद्र

अच्छे कभी बुरे हैं हालात आदमी के

बशीर मुंज़िर

मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है

बाक़र मेहदी

वो रिंद क्या कि जो पीते हैं बे-ख़ुदी के लिए

बाक़र मेहदी

गूँजता शहरों में तन्हाई का सन्नाटा तो है

बाक़र मेहदी

बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है

बाक़र मेहदी

ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही

बक़ा बलूच

क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा

बक़ा बलूच

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