ख़ूबसूरत है सिर्फ़ बाहर से
ये इमारत भी आदमी सी है
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मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए
न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से
पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का
चारासाज़ो मिरा इलाज करो
कोई किरदार अदा करता है क़ीमत इस की
ज़ीस्त उनवान तेरे होने का
किसी बुज़दिल की सूरत घर से ये बाहर निकलता है
सिलसिला यूँ भी रवा रक्खा शनासाई का
दाग़ चेहरे का यूँही छोड़ दिया जाता है
नींद पलकों पे यूँ रखी सी है
जो मेरा झूट है अक्सर मिरे अंदर निकलता है