किसी बुज़दिल की सूरत घर से ये बाहर निकलता है
मिरा ग़ुस्सा किसी कमज़ोर के ऊपर निकलता है
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पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का
ज़ीस्त उनवान तेरे होने का
न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से
सिलसिला यूँ भी रवा रक्खा शनासाई का
मुझ को हर सम्त ले के जाता है
मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए
जो मेरा झूट है अक्सर मिरे अंदर निकलता है
मोहतरम कह के मुझे उस ने पशेमान किया
चारासाज़ो मिरा इलाज करो
नींद पलकों पे यूँ रखी सी है
कोई किरदार अदा करता है क़ीमत इस की