चारासाज़ो मिरा इलाज करो
आज कुछ दर्द में कमी सी है
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
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Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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कोई किरदार अदा करता है क़ीमत इस की
ज़ीस्त उनवान तेरे होने का
दाग़ चेहरे का यूँही छोड़ दिया जाता है
नींद पलकों पे यूँ रखी सी है
ख़ूबसूरत है सिर्फ़ बाहर से
सिलसिला यूँ भी रवा रक्खा शनासाई का
न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से
मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए
जो मेरा झूट है अक्सर मिरे अंदर निकलता है
मुझ को हर सम्त ले के जाता है
पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का