आदमी Poetry (page 18)

हमेशा तंग रहा मुझ पे ज़िंदगी का लिबास

असग़र मेहदी होश

आए थे घर में आग लगाने शरीर लोग

असग़र मेहदी होश

मोहब्बतें भी उसी आदमी का हिस्सा थीं

असअ'द बदायुनी

जो लोग रातों को जागते थे

असअ'द बदायुनी

ख़ुदी के ज़ो'म में ऐसा वो मुब्तला हुआ है

अरशद महमूद अरशद

जब मैं उस आदमी से दूर हुआ

अरशद लतीफ़

जब मैं उस आदमी से दूर हुआ

अरशद लतीफ़

बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है

अरशद अली ख़ान क़लक़

मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में फ़िक्र-ओ-फ़न में था

अक़ील शादाब

ज़माने के झमेलों से मुझे क्या

अनवर शऊर

ठहर सकती है कहाँ उस रुख़-ए-ताबाँ पे नज़र

अनवर शऊर

'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं

अनवर शऊर

निज़ाम-ए-ज़र में किसी और काम का क्या हो

अनवर शऊर

इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह

अनवर शऊर

चले आया करो मेरी तरफ़ भी!

अनवर शऊर

बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है

अनवर शऊर

ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ

अनवर शऊर

उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से

अनवर शऊर

मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक

अनवर शऊर

मैं अपने-आप से पीछा छुड़ा के

अनवर शऊर

जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं

अनवर शऊर

इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह

अनवर शऊर

हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है

अनवर शऊर

बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है

अनवर शऊर

और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे

अनवर शऊर

इज़ाफ़ी ज़रूरतों के लिए एक नज़्म

अनवर सेन रॉय

उस की अना के बुत को बड़ा कर के देखते

अनवर सदीद

ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो

अनवर साबरी

कुछ अबरुओं पे बल भी हैं ख़ंदा-लबी के साथ

अनवर साबरी

हासिल-ए-ग़म यही समझते हैं

अनवर साबरी

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