जब मैं उस आदमी से दूर हुआ
ग़म मिरी ज़िंदगी से दूर हुआ
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किसी सूरत अगर इज़हार की सूरत निकल आए
सभी ताबीर उस की लिख रहे हैं
फैलती जा रही है ये दुनिया
कोई तो मोजज़ा ऐसा भी हो अपनी मोहब्बत में
अजब कशिश है तिरे होने या न होने में
कोई नहीं है इंतिज़ार सुब्ह-ए-विसाल के सिवा
एक सूरत तिरी बनाने में
मोहब्बत सिर्फ़ इक जज़्बा नहीं है
तिरे ख़याल से फिर आँख मेरी पुर-नम है
ख़ला का मसअला ही मुख़्तलिफ़ है