'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं
ये सादगी है तो वल्लाह इंतिहा की है
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शक नहीं है हमें उस बुत के ख़ुदा होने में
यादों के बाग़ से वो हरा-पन नहीं गया
ख़्वाह दिल से मुझे न चाहे वो
जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं
कोई ज़ंजीर नहीं तार-ए-नज़र से मज़बूत
दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'
किया बादलों में सफ़र ज़िंदगी भर
हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
आवारा हूँ रैन-बसेरा कोई नहीं मेरा