सामने आ कर वो क्या रहने लगा
घर का दरवाज़ा खुला रहने लगा
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कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले
वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती
यादों के बाग़ से वो हरा-पन नहीं गया
हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
तेरी सोहबत में बैठा हूँ
गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा
हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे
मैं ख़ाक हूँ आब हूँ हवा हूँ
आवारा हूँ रैन-बसेरा कोई नहीं मेरा
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़