बिहार Poetry (page 22)

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसी भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आहों से होंगे गुम्बद-ए-हफ़्त-आसमाँ ख़राब

इमदाद अली बहर

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

ये बहार वो है जहाँ रही असर-ए-ख़िज़ाँ से बरी रही

इलियास इश्क़ी

अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न

इज्तिबा रिज़वी

इक अख़्गर-ए-जमाल फ़रोज़ाँ ब-शक्ल-ए-दिल

इज्तिबा रिज़वी

हवाएँ अन-पढ़ हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक था राजा छोटा सा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

घबरा गए हैं वक़्त की तन्हाइयों से हम

इफ़्फ़त ज़र्रीं

मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था

इब्राहीम अश्क

देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाई

इब्न-ए-सफ़ी

ज़ेहन से दिल का बार उतरा है

इब्न-ए-सफ़ी

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता

हिलाल फ़रीद

है जब तक दश्त-पैमाई सलामत

हिजाब अब्बासी

आरास्ता बज़्म-ए-ऐश हुई अब रिंद पिएँगे खुल खुल के

हीरा लाल फ़लक देहलवी

चमन वही है घटाएँ वही बहार वही

हया लखनवी

आह ये बरसात का मौसम ये ज़ख़्मों की बहार

हया लखनवी

शौक़ कहता है कि चलिए कू-ए-जानाँ की तरफ़

हया लखनवी

चमन वही है घटाएँ वही बहार वही

हया लखनवी

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

हातिम अली मेहर

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