चमन वही है घटाएँ वही बहार वही
मगर गुलों में वो अब रंग-ओ-बू नहीं बाक़ी
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न होती हाल-ए-दिल कहने की गर हिम्मत तो अच्छा था
निगाह-ए-शौक़ अगर दिल की तर्जुमाँ हो जाए
रहें ग़म की शरर-अंगेज़ियाँ या-रब क़यामत तक
आह ये बरसात का मौसम ये ज़ख़्मों की बहार
शौक़ कहता है कि चलिए कू-ए-जानाँ की तरफ़