बिहार Poetry (page 21)

ज़िंदाँ-नसीब हूँ मिरे क़ाबू में सर नहीं

इक़बाल सुहैल

ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की

इक़बाल सुहैल

न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को

इक़बाल सुहैल

गुज़र गई जो चमन पर वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी

दामन-ए-दिल है तार तार अपना

इक़बाल सफ़ी पूरी

ख़िज़ाँ का दौर भी आता है एक दिन 'कैफ़ी'

इक़बाल कैफ़ी

सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है

इक़बाल कैफ़ी

लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं

इक़बाल कैफ़ी

आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

टुक इक ऐ नसीम सँभाल ले कि बहार मस्त-ए-शराब है

इंशा अल्लाह ख़ान

तू ने लगाई अब की ये क्या आग ऐ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है

इन्दिरा वर्मा

मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे

इन्दिरा वर्मा

दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है

इन्दिरा वर्मा

ख़िज़ाँ के होश किसी रोज़ मैं उड़ाता हुआ

इमरान हुसैन आज़ाद

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

महफ़िल में उस पे रात जो तू मेहरबाँ न था

इम्दाद इमाम असर

शोर है उस सब्ज़ा-ए-रुख़्सार का

इमदाद अली बहर

कभी देखें जो रू-ए-यार दरख़्त

इमदाद अली बहर

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

इमदाद अली बहर

हम नाक़िसों के दौर में कामिल हुए तो क्या

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ

इमदाद अली बहर

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

इमदाद अली बहर

बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का

इमदाद अली बहर

बग़ैर यार गवारा नहीं कबाब शराब

इमदाद अली बहर

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