बाज़ार Poetry (page 15)
देखो अभी लहू की इक धार चल रही है
फ़रहत एहसास
बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें
फ़रहत एहसास
आख़िर उस के हुस्न की मुश्किल को हल मैं ने किया
फ़रहत एहसास
ऐ हम-सफ़रो क्यूँ न यहीं शहर बसा लें
फख्र ज़मान
ऐ हम-सफ़रो क्यूँ न नया शहर बसा लें
फख्र ज़मान
मामूली बे-कार समझने वाले मुझ से दूर रहें
फ़ैज़ आलम बाबर
उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
रक़ीब से!
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
पैरिस
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इधर न देखो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दो इश्क़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दिलदार देखना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दर-ए-उमीद के दरयूज़ा-गर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
जाहिलों को सलाम करना है
फ़हमी बदायूनी
लहू ने क्या तिरे ख़ंजर को दिलकशी दी है
एज़ाज़ अफ़ज़ल
दिल बुझ गया तो गर्मी-ए-बाज़ार भी नहीं
एजाज़ वारसी
दूसरों की आँख ले कर भी पशेमानी हुई
एजाज़ उबैद
थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में
एजाज़ गुल
मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ
एजाज़ गुल
इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या
एजाज़ गुल
न सियो होंट न ख़्वाबों में सदा दो हम को
एहसान दानिश
ख़ुदा भी जानता है ख़ूब जो मक्कार बैठे हैं
डॉक्टर आज़म
तमाशा मिरे आगे
दिलावर फ़िगार
मौसीक़ी से इलाज
दिलावर फ़िगार
अहमक़ों की कांफ्रेंस
दिलावर फ़िगार
मख़्फ़ी हैं अभी दिरहम-ओ-दीनार हमारे
दिलावर अली आज़र
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