बाज़ार Poetry (page 17)

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ

बशीर बद्र

क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत

बाक़ी सिद्दीक़ी

दिल से बाहर हैं ख़रीदार अभी

बाक़ी सिद्दीक़ी

दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है

बाक़ी सिद्दीक़ी

दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती

बाक़ी अहमदपुरी

दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!

बाक़र मेहदी

तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था

बकुल देव

मिरे कुछ भी कहे को काटता है

बकुल देव

क़ातिल हुआ ख़मोश तो तलवार बोल उठी

बख़्श लाइलपूरी

पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या

ज़फ़र

है बहुत मुश्किल निकलना शहर के बाज़ार में

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए

अज़्म बहज़ाद

चोर-बाज़ार

अज़ीज़ क़ैसी

दिल-ख़स्तगाँ में दर्द का आज़र कोई तो आए

अज़ीज़ क़ैसी

आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग

अज़ीज़ नबील

कौन वाँ जुब्बा-ओ-दस्तार में आ सकता है

अज़ीम हैदर सय्यद

देख क़िंदील रुख़-ए-यार की जानिब मत देख

अज़हर अब्बास

सुब्ह आती है तो अख़बार से लग जाते हैं

अज़ीज़ परीहारी

अश्क को दरिया बनाया आँख को साहिल किया

औरंगज़ेब

दे कर पिछली यादों का अम्बार मुझे

अतीक़ुल्लाह

चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना

अता तुराब

कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे

अता तुराब

पारसाओं ने बड़े ज़र्फ़ का इज़हार किया

अता शाद

जागते ही नज़र अख़बार में खो जाती है

अता आबिदी

तआरुफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

मज़दूरों का गीत

असरार-उल-हक़ मजाज़

दिल्ली से वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

ग़ज़ल-पैमाई

असरार जामई

दिल्ली दर्शन

असरार जामई

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