सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!

सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!

हो सके मिलने की इक शाम कभी लिख लेना!

यूँ तो हम अहल-ए-जुनूँ कुछ भी नहीं करते हैं

गुमरही का ही सही काम कभी लिख लेना!

मय-गुसारों पे तड़पने की भी पाबंदी है

तिश्ना-कामों के लिए जाम कभी लिख लेना!

कितनी रौशन हैं समुंदर की चमकती रातें

डूबती लहरों का अंजाम कभी लिख लेना!

भूत ख़्वाबों में फ़रिश्ते से नज़र आते हैं

ज़ेहन में अपने ये औहाम कभी लिख लेना!

तोड़ के कितनी चटानों को निकल आए हैं

सारे जज़्बे हैं मगर ख़ाम कभी लिख लेना!

बिक रहा है सर-ए-बाज़ार हर इक दानिश-वर

हम से आवारा के कुछ दाम कभी लिख लेना!

जुर्म कोई नहीं 'बाक़र' को रिहा मत करना

कुछ न कुछ ढूँड के इल्ज़ाम कभी लिख लेना!

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